Few days ago, i heard Laal Band's song Maine usse yeh kaha - http://www.youtube.com/watch?v=zyBswYoUnf0 . Not only the lyrics seem catchy, they were very political. Some googling resulted in the lyrics with translation which can be found here - http://pak.nkut.com/entertainment/mainay-uss-say-yeh-kaha-laal.html
"Maine usse yeh kaha" is a satirical poem written by Habib Jalib. In the poem, he is talking to some govt. bigshot explaining him that you are right and the public in general are morons. I loved how the lyrics play out. The idea of a satirical poem inspired me, so here is my edition of "मैंने उससे यह कहा". In my version, i am speaking to the common man.
मैंने उससे यह कहा
मैंने उससे यह कहा
तू काहे को है परेशान
जब तक है तू , ख़ुशी मना इस दौरान
आयेंगे हमारे बाद जो,
उनकी फ़िक्र हमें क्यों
यह है उनका इम्तेहान
खुद ढूंढेंगे वे समाधान
मैंने उससे यह कहा
मैंने उससे यह कहा
ग्लोबल वार्मिंग एक मिथ्य है
सारे यह प्रदूषण असत्य है
भ्रष्टाचार न जाने कौन सा तथ्य है
विश्वास है मुझे मेरे राम पे
पार कराएँगे इस संताप से
घर बैठ के तू विश्राम कर
सुबह शाम दो माला का जाप कर
मैंने उससे यह कहा
मैंने उससे यह कहा
देश तरक्की है कर रहा
FDI, GDP आज सब है बढ़ रहा
भूल जा तू किसान को
हर छोटे बूढ़े उस इंसान को
यह है एक नया दौर
तू तेज़ रफ़्तार से दौड़
अपने आप का सोचना भी है इक कला
तेरे भले में ही है देश का अब भला
तेरे भले में ही है देश का अब भला
मैंने उससे यह कहा
FDI, GDP आज सब है बढ़ रहा
भूल जा तू किसान को
हर छोटे बूढ़े उस इंसान को
यह है एक नया दौर
तू तेज़ रफ़्तार से दौड़
अपने आप का सोचना भी है इक कला
तेरे भले में ही है देश का अब भला
तेरे भले में ही है देश का अब भला
मैंने उससे यह कहा
मैंने उससे यह कहा
हम लोग हैं बड़े होशियार
छोटी चिंता पर न हो तू बीमार
सूर्य शक्ति हैं अपने आर्ड़
सूर्य शक्ति हैं अपने आर्ड़
परमाणु भी हैं अपने पास
गला देंगे पलास्टिक को
जोड़ देंगे ओज़ोन परत को
अगर फिर भी संतुष्ट ना हुए हम
मार्स पहुँच कर जायेंगे जम
मैंने उससे यह कहा
अगर फिर भी संतुष्ट ना हुए हम
मार्स पहुँच कर जायेंगे जम
मैंने उससे यह कहा
मैंने उससे यह कहा
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