गुलामी
आओ आज आज़ादी के दिन गुलामी का गुणगान करें
आओ , कम से कम आज तो, सच का सम्मान करें
बहुत कड़वी है पूर्ण भाव प्रकटन की स्वतंत्रता
नहीं सुनी जाती हमसें हमारी कमजोरी
वचन जो हमारे हित में नहीं
कहलाये जाते हैं मानहानि
दुश्मनों को दोस्ती का हाथ
या फिर कह दो सुन्दर सी बात
है अब दुर्बलता की निशानी
जो करना चाहते हैं
बस वही नहीं करते
हमारी ख़ुशी की हमें ही नहीं परवाह
कहीं वो अनजान समाज रूठ न जाए
ताज़ा रात में, शुद्ध सवेरे में
नींद का सहारा लिए छुप जाते हैं हम
कहीं अपने आप से दिल की बात न हो जाये
हैं हम
अपने ही कर्मों के गुलाम
यह जो हकीकत हैं
मुझे पसंद नहीं
देश की जो भी है बिमारी
मेरी मुसीबत नहीं
कल बिलकुल सुहाना होगा
मेरा ही तराना होगा
हूँ मैं
अपनी ही काल्पनिकता का गुलाम
आज आज़ाद हैं हम
चुनने को
दो बेवकूफों में से एक को
अपना प्रधानमन्त्री
मुक्त हैं हम आज तो
खुद से अपना
गला घोटने के लिए
गुलाम तो वे थे
जो देश के लिए जान दिया करते थे
No comments:
Post a Comment