अजब तमाशा है लगा हुआ |
हाल है चका-चक सजा हुआ ||
हर आदमी बने फ़िर रहा है सेठ |
सूट बूट पहने लग रहा है ठेठ ||
कहते है इसको करियर फेयर |
आज हमने भी की इसकी सैर ||
कंपनियों ने लगाये हुए है अपने बूथ |
नौकरी देने के लिए भेजे हैं अपने दूत ||
नौकरी का मेला है यह मंझा हुआ |
हाल भी है कचा-कच भरा हुआ ||
नौकर ले रहे हैं नौकर का इम्तिहान |
शकल दिखाने पे दे रहे हैं इनाम ||
काग़ज़ की चिठे पे लिख रखी है सारी दास्तान |
तू मान न मान , में हूँ तेरा मेहमान ||
क्या मोल है मेरा तेरी दूकान पे |
नौकरी दे भई, आज तू मेरा भगवान् रे ||
यह नौकरी भी मस्त चीज़ है
जब ना हो हाथ में
तो जो मिले वोह सजे
जो एक आई हाथ में
तो भाव भड़ने लगे
जो दूजी हाथ आवे
तो सर चड़ने लगे
खाली हाथ गए खाली हाथ लौटे |
कुछ सपने अन्दर ही अन्दर लपेटे ||
ख़ुद को बाज़ार में बेच नहीं पाए |
अपने आप को ही घाटे में खरीद लाये ||
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3 comments:
bahut hi mast
bilkul durust likha hai
बिलकुल सोलह आने सच है लिखा है भैया. माजा आ गया बाई गौड.
Arvind....Shayar....Batra
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