Saturday, February 27, 2010

मियाँ तुम कहाँ रहते हो?

मियाँ तुम कहाँ रहते हो?
अजी क्या इसी दुनिया में जीते हो


शरीर का बाज़ार हर रात को लगता है
एक अछूत अभी भी मंदिर के बाहर ही भटकता है
शादी में दहेज़ अभी भी ज़रूरी है
आधे गावों में बेटी अभी भी एक मजबूरी है
यह equality का नारा काहे बार बार दोहराते हो
मियाँ तुम कहाँ रहते हो? अजी क्या इसी दुनिया में जीते हो

देश आज़ाद होने से देश वासी आज़ाद नहीं होते
ज़रा रात को टहलो, लोग अभी भी सड़क पे हैं सोते
तुम तो पढ़ लिख गए, समाज अभी भी है अनपढ़
तुम्हारे मल्टी-नेशनल कंपनी का जमादार अभी भी है बेघर
यह अपनी अंग्रेजी किस पर दिखाते हो?
मियाँ तुम कहाँ रहते हो? अजी क्या इसी दुनिया में जीते हो

कर्म करो, फल की चिंता मत करो- यह है तुम्हारा विश्वास
सदा सत्य बोलो, निंदा न करो, यह है तुम्हारी करनी
माला फेरने वाले के सामने खूब जोर से ठहाके मारते हो.
परन्तु, लेकिन, किन्तु, ...
फसल उगाने वाले के घर में रोटी नहीं हैं
ज़िन्दगी भर बचाई हुई वोह पेन्शन कहीं खोई हुई है
पूरे दिन की मेहनत के बाद जेब अभी भी खाली पड़ी है
न जाऊं मंदिर तोह फिर कहाँ जाऊं
मेरे अंध विश्वास का मज़ाक काहे उड़ाते हो?
मियाँ तुम कहाँ रहते हो? अजी क्या इसी दुनिया में जीते हो

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